बिना उसे रंग लगाए
कहीं ये फागुन लौट ना जाएं ♡
एक तरफ, कविता को मेरा इंतज़ार एक तरफ मुझे तुम्हारा इंतज़ार
एक तरफ, दुनिया की बेकार की बातें एक तरफ ओस की तरह तुम्हारा मौन
एक तरफ, पेड़ से चुपचाप गिरते पत्ते
एक तरफ, तितली, भंवरे, सरसों के पीले फूल एक तरफ मेरे अंतर्मन पटल पर तुम्हारा हँसता मुखड़ा
एक तरफ, पूस की ठंडी रात एक तरफ जेठ सा तुम्हारा ख्याल
आज फिर दिन ढल गया.. जीवन में प्रेम, प्रेम में जीवन खोजते हुए।
Mrinali pandey
Unka hath pakad lo khud se while crossing the road,
Wo ussi mein khush ho jati hai
Unko kabhi kabar flowers, jhumke ya payal gift kardo,
Wo ussi mein khush ho jati hai
Unko pyaar se attention dedo
Wo ussi mein khush ho jati hai
Unko pichche se surprisingly hug kar do
Wo ussi mein khush ho jati hai
Unki roz ki bakbak ko suno
Wo ussi mein khush ho jati hai
Shyam writes
We think we want sex.
It's not always about sex.
It's intimacy we want.
To be touched. Looked at. Admired. Smiled at.
Laugh with someone. Feel safe. Feel like someone's really got you.
That's what we crave.
Heyy
With the intention of
Letting u sit in my lap
Me caressing your hair
And you sharing me your weird thoughts!!
Isn't it appealing?
तुम्हें मेरी ज़िन्दगी में आना चाहिए
हम देश दुनिया की खूबसूरत सड़कों की बातें करेंगे
हम सरहद पर मारे गए लड़कों की बातें करेंगे
मैं फिर सोचूंगी कि तुम बढ़िया आदमी हो।
तुम्हें मेरा, पूरी तरह मेरा हो जाना चाहिए
हम साथ में कई कविताओं किताबों को जियेंगे
हम हमारे नए पुराने ख्वाबों को जियेंगे
मैं फिर तुमसे कहूँगी कि तुम बढ़िया आदमी हो।
तुम्हें पूरी दुनिया में फ़ैल जाना चाहिए
ये दुनिया तुम्हारे मांस से अपना घर बनाएगी
ये दुनिया तुम्हारी अच्छी आत्मा को नोंच खायेगी
पर तुम ज़िंदा रहना और मेरे पास वापस लौटना
दोस्त हम हाथ पकड़ समंदर किनारे बहुत दूर तक जायेंगे
और फिर हम दोनों तय करेंगे कि हम बढ़िया आदमी हैं।
हमें अब मर जाना चाहिए।
| ज्योति यादव
वो गाड़ी से झांक शहर देख रही थी।
मैं कनखियों से उसे देख रहा था।
वो अपना घर देख रही थी-
मैं अपना घर देख रहा था।।
किसी सुबह मैं देर उठूं और
तुम घर के आंगन में बाल बनाती मिलो-
और
पूछो कि क्या ये वक़्त है उठने का।
तुम्हारी मीठी डाँट के बीच
मैं चेहरा धोता जाऊँ-
तुमसे पूछ कर-
गैस पर दो चाय चढ़ाऊँ।
ये कविता लिखता जाऊँ
या कविता खत्म न कर पाऊँ।
क्योंकि ये कुछ न हो पाया-
बस ये कविता में है
और नहीं चाहता मैं ये खत्म कर पाऊँ-
फिर भोर अंधेरे आँख मैं खोलूँ
और
कमरे में बस खुद को पाऊँ।।
Silsila (1981) by yash chopra
उसकी आँखे एक सघन जंगल हैं
घर से निकलते ही सूर्य की किरणें
पूछती हैं सबसे पहले,जिसका पता
उसकी आँखे समुद्र का गहरा नीला पानी है,
जिसमें तैरती असंख्य रंगीन मछलियाँ
गूथतीं है मोतियों की माला
उसकी आँखे कभी ना खाली होने वाली नदी
का मीठा पानी हैं,जिसकी कोरों पर आकर
ठहरे हर दुख ने बुझाई है अपनी प्यास...
उसकी आँखो के पास कई इंद्रधनुषी रंग हैं,
जो ठहर जाएँ जिस किसी भी दृश्य पर
वो दृश्य फिर देर तक रहता है हरा!
Chitra singh
I'm an old school lover
So i would take you to eat streetfood ♡
बाकी दिनों तो तुम ही ऑफिस जाने से पहले चाय बना के देती हो
लेकिन Sunday के दिन में तुम्हारे लिए चाय बना रहा हूं
और तुम किचन के प्लेटफॉर्म पर बैठे बैठे मुझे कविताएं सुना रही हो
क्योंकि तुम्हें कविताएं बहोत पसंद है और मुझे तुम्हारी आवाज़
फिर चाय बनाने के बाद सोफे में तुम मेरी बांहों में लेटे लेटे चाय पीती हो
मेरे एक हाथ में चाय का कप है और दूसरे हाथ से में तुम्हारे बालों को सहला रहा हूं
क्योंकि तुम्हें मेरा बालों का सहेलाना बेहद पसंद है और जो तुझे पसंद है वो मुझे कैसे नहीं पसंद हो सकता।
और इसी तरह sunday की शाम हम एक दूसरे से गप्पे लड़ा कर पसार करते है।
Shyam writes
And what if my only goal is
to having chai with that person
With whom i can talk about cinema, literature, music, science and what not
Being loyal to that person for life time.
Aur ye sab ham not in our young age but 70s 80s tak bhi life long krte rahe.