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#desi academia – @natkhat-sa-shyam on Tumblr
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purnima ka chand

@natkhat-sa-shyam

i doubt, i think, therefore i'm. एक लड़का जो किताबें, पुराने गाने, चाय और सिनेमा के पीछे पागल है🌻
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एक तरफ, कविता को मेरा इंतज़ार एक तरफ मुझे तुम्हारा इंतज़ार

एक तरफ, दुनिया की बेकार की बातें एक तरफ ओस की तरह तुम्हारा मौन

एक तरफ, पेड़ से चुपचाप गिरते पत्ते

एक तरफ, तितली, भंवरे, सरसों के पीले फूल एक तरफ मेरे अंतर्मन पटल पर तुम्हारा हँसता मुखड़ा

एक तरफ, पूस की ठंडी रात एक तरफ जेठ सा तुम्हारा ख्याल

आज फिर दिन ढल गया.. जीवन में प्रेम, प्रेम में जीवन खोजते हुए

Mrinali pandey
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Women are simple

Unka hath pakad lo khud se while crossing the road,

Wo ussi mein khush ho jati hai

Unko kabhi kabar flowers, jhumke ya payal gift kardo,

Wo ussi mein khush ho jati hai

Unko pyaar se attention dedo

Wo ussi mein khush ho jati hai

Unko pichche se surprisingly hug kar do

Wo ussi mein khush ho jati hai

Unki roz ki bakbak ko suno

Wo ussi mein khush ho jati hai

Shyam writes
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तुम बढ़िया आदमी हो

तुम्हें मेरी ज़िन्दगी में आना चाहिए

हम देश दुनिया की खूबसूरत सड़कों की बातें करेंगे

हम सरहद पर मारे गए लड़कों की बातें करेंगे

मैं फिर सोचूंगी कि तुम बढ़िया आदमी हो।

तुम्हें मेरा, पूरी तरह मेरा हो जाना चाहिए

हम साथ में कई कविताओं किताबों को जियेंगे

हम हमारे नए पुराने ख्वाबों को जियेंगे

मैं फिर तुमसे कहूँगी कि तुम बढ़िया आदमी हो।

तुम्हें पूरी दुनिया में फ़ैल जाना चाहिए

ये दुनिया तुम्हारे मांस से अपना घर बनाएगी

ये दुनिया तुम्हारी अच्छी आत्मा को नोंच खायेगी

पर तुम ज़िंदा रहना और मेरे पास वापस लौटना

दोस्त हम हाथ पकड़ समंदर किनारे बहुत दूर तक जायेंगे

और फिर हम दोनों तय करेंगे कि हम बढ़िया आदमी हैं।

हमें अब मर जाना चाहिए

| ज्योति यादव

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वो गाड़ी से झांक शहर देख रही थी।

मैं कनखियों से उसे देख रहा था।

वो अपना घर देख रही थी-

मैं अपना घर देख रहा था।।

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किसी सुबह मैं देर उठूं और

तुम घर के आंगन में बाल बनाती मिलो-

और

पूछो कि क्या ये वक़्त है उठने का।

तुम्हारी मीठी डाँट के बीच

मैं चेहरा धोता जाऊँ-

तुमसे पूछ कर-

गैस पर दो चाय चढ़ाऊँ।

ये कविता लिखता जाऊँ

या कविता खत्म न कर पाऊँ।

क्योंकि ये कुछ न हो पाया-

बस ये कविता में है

और नहीं चाहता मैं ये खत्म कर पाऊँ-

फिर भोर अंधेरे आँख मैं खोलूँ

और

कमरे में बस खुद को पाऊँ।।

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उसकी आँखे एक सघन जंगल हैं

घर से निकलते ही सूर्य की किरणें

पूछती हैं सबसे पहले,जिसका पता

उसकी आँखे समुद्र का गहरा नीला पानी है,

जिसमें तैरती असंख्य रंगीन मछलियाँ

गूथतीं है मोतियों की माला

उसकी आँखे कभी ना खाली होने वाली नदी

का मीठा पानी हैं,जिसकी कोरों पर आकर

ठहरे हर दुख ने बुझाई है अपनी प्यास...

उसकी आँखो के पास कई इंद्रधनुषी रंग हैं,

जो ठहर जाएँ जिस किसी भी दृश्य पर

वो दृश्य फिर देर तक रहता है हरा!

Chitra singh
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बाकी दिनों तो तुम ही ऑफिस जाने से पहले चाय बना के देती हो

लेकिन Sunday के दिन में तुम्हारे लिए चाय बना रहा हूं

और तुम किचन के प्लेटफॉर्म पर बैठे बैठे मुझे कविताएं सुना रही हो

क्योंकि तुम्हें कविताएं बहोत पसंद है और मुझे तुम्हारी आवाज़

फिर चाय बनाने के बाद सोफे में तुम मेरी बांहों में लेटे लेटे चाय पीती हो

मेरे एक हाथ में चाय का कप है और दूसरे हाथ से में तुम्हारे बालों को सहला रहा हूं

क्योंकि तुम्हें मेरा बालों का सहेलाना बेहद पसंद है और जो तुझे पसंद है वो मुझे कैसे नहीं पसंद हो सकता।

और इसी तरह sunday की शाम हम एक दूसरे से गप्पे लड़ा कर पसार करते है।

Shyam writes
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